Saturday

डा. विष्णु सक्सेना..

मुक्तक...

बेसुरे साज़ पर भी गीत गाने लगते हैं,
ज़रा सी ठेस पर आंसू बहाने लगते हैं|
इतने नादान हैं ये लड़के इन्हे तंज करो,
तेज बारिश में पतंगे उडाने लगते हैं||

ये तो पत्थर में भी मूरत उभार देते हैं,
भरते हैं रंग और फ़िर निखार देते हैं|
इतने भोले हैं ये लड़के ये जानते ही नही ,
एक मुस्कान पे जीवन गुजार देते हैं ||

ख्वाब आंखों में लिए प्यार के जब सोते हैं ,
टूटती नीद तो फ़िर जार जार रोते हैं |
प्यार का दर्द तो होता बहुत मीठा पर,
फ़िर भला आंसूं ये नमकीन से क्यों होते हैं||

फूल को तोड़ना था शाख को क्यों तोड़ दिया,
तय था इधर आना तो रुख क्यों उधर मोड़ लिया|
हमको अपना बना के छोड़ने का दावा किया,
आज अपना बनाया और यु ही छोड़ दिया ||

डा. विष्णु सक्सेना..

रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा....

रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा, एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।

तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया, पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं।

मैं तो पतझर था फिर क्यूँ निमंत्रण दिया

ऋतु बसंती को तन पर लपेटे हुये,

आस मन में लिये प्यास तन में लिये

कब शरद आयी पल्लू समेटे हुये,

तुमने फेरीं निगाहें अँधेरा हुआ, ऐसा लगता है सूरज उगेगा नहीं।

मैं तो होली मना लूँगा सच मानिये

तुम दिवाली बनोगी ये आभास दो,

मैं तुम्हें सौंप दूँगा तुम्हारी धरा

तुम मुझे मेरे पँखों को आकाश दो,

उँगलियों पर दुपट्टा लपेटो न तुम, यूँ करोगे तो दिल चुप रहेगा नहीं।

आँख खोली तो तुम रुक्मिणी सी लगी

बन्द की आँख तो राधिका तुम लगीं,

जब भी सोचा तुम्हें शांत एकांत में

मीरा बाई सी एक साधिका तुम लगी

कृष्ण की बाँसुरी पर भरोसा रखो, मन कहीं भी रहे पर डिगेगा नहीं|


Friday

डाँ. कुंअर बेचैन...

कुछ और शेर...

दो चार बार हम कभी हस हँसा लिए,
सारे
जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए |
रहते हमारे पास तो ये टूटते ज़रूर,
अच्छा
किया जो आपने सपने चुरा लिए ||

दुनिया ने मुझपे फेके थे पत्थर जो बेहिसाब |
मेने उन्ही को जोड़ के कोई घर बना लिए ||

कहाँ वो नई गहिरायाँ हसने हँसाने में,
मिलेंगी जो किसी के साथ दो आंसू बहने में |
तुम आये तो खुशी आई लेकिन हसूं अभी केसे ,
कुछ देर तो लगती है रो कर मुस्कराने में ||

Is poetry realy live in todays fast running life?

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