Monday

अदिति प्रसाद


जाने क्यों इस जगह से भर गया है मन,
जाने क्यों दिल में है तन्हाईयाँ और आँखों में सूनापन.
जाने क्यों अब अपने अपनों से नहीं लगते,
जाने क्यों अब कस्मे वादे सपनो से लगते.
जाने क्यों अपनों के लिए सर झुकाने का मन नहीं करता,
जाने क्यों दर्द में भी मुस्कराना है पड़ता.
जाने क्यों आ गयी हैं है ये दूरियां,
जानू न क्यों है और क्या कभी मिटेंगी ये दूरियां |
 

Is poetry realy live in todays fast running life?

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