Tuesday

अदिति प्रसाद


इस बहरूपिया ज़िन्दगी ने मुखोटा लगाना सिखा दिया,
हम तो अच्छे थे बच्चे थे, पता नहीं ये क्या बना दिया,
पर क्या पता था एक दिन इस अनचाहे रंग मे रंग जायेंगे,
हसेंगे होठो से पर बाद मे आँखे नम कर जायेंगे,
पर क्या करें इस ज़िंदगी ने हमे ढोंगी बनना भी सिखा दिया ।


लोग कहते हैं रोना अच्छी बात नहीं, रोया मत करो,
मेरी बिनती है उनसे कि ये हक मुझसे छीना मत करो,
क्योकि जब....
अपने इल्ज़ाम लगाते हैं, आंसू उन इल्ज़ामो को मन से धो देते हैं,
लोग दुख देते हैं, आंसू उन दुखों को कम कर देते हैं ।
तो आप ही बतओ क्यो ना नम करू मैं अपनी पलकों को ?


कभी मतलबी होने का मतलब नहीं पता था,
आज वही मतलबी ज़िन्दगी जिये जा रही हू,
आज निभती है तो मतलब से टूटी है तो मतलब है,
अपना असतित्व ही पीछे छूटता जा रहा हो जैसे ।


अकेलेपन और तन्हाइयों का साथ अब अच्छा लगने लगा है,
लोगों के बीच मे तन्हा-तन्हा सा लगने लगा है,
काश ज़िन्दगी एक ऐसा मोड लाये जिसमे हम अपने असली रूप मे आयें ।
और फिर से वही अच्छे से सच्चे से बच्चे बन जायें ।
और फिर से वही अच्छे से सच्चे से बच्चे बन जायें ।।

Is poetry realy live in todays fast running life?

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