Saturday

चित्रांश सक्सेना


"मुस्कराना चाहता है...."

समन्दर के किनारे घर बनाना चाहता है,
क्या है वो, दुनिया को दिखाना चाहता है।

डरता  था  कभी  जो  लहरों  से बहुत,
आज  वो  लहरों  को  डराना चाहता है।

थक  गया  जो नफरतों के  दौर से अब,
प्यार  कैसे  हो,  वो  सिखाना चाहता है।

दुनिया की इस  भीड़ मे जो खो गया था,
अब  वो  अलग चेहरा बनाना चाहता है।

पत्थरों  के  सामने  अब  तक रोता रहा,
‘दिल’ है वो, जो अब मुस्कराना चाहता है।

चित्रांश सक्सेना


"ख्वाब हैं कि...."

ख्वाब भी अब नींदों मे आते हैं नही,
देख कर अब वो मुस्कराते हैं नहीं ।

मुद्दतें  हो  गयीं  हैं  रात सोये हुये,
ख्वाब हैं कि आंचल बिछाते हैं नहीं ।

खुद  से  करते  रहते  हैं बातें यूँहीं,
ख्वाब  हैं कि बातें  बनाते हैं नहीं ।

थक  गये  हैं  हिचकियाँ  लेते हुये,
ख्वाब  हैं कि पानी पिलाते हैं नहीं ।

झूठे  लोगों  का  तमाशा  देख कर,
ख्वाब भी अब सच दिखाते हैं नहीं ।

चित्रांश सक्सेना


"कुछ नहीं है...."

बातें तो बनाता है बहुत करता कुछ नहीं है,
दिल भी बडा पागल है सुनता कुछ नहीं है॥

सपने तो दिखाता है बहुत,
नींदें भी उड़ाता है बहुत,
कागज के कुछ टुकड़ों से
वो नाव बहाता है बहुत ।
जब बोलो कुछ करने को तब सुनता नहीं हैं,
बातें तो बनाता है बहुत करता कुछ नहीं है ।

यूँ लड़ता भी बहुत है
और रोता भी बहुत है,
जब आये वो अपने पर
तो सुनता भी बहुत है
खुद रो लेगा अन्दर ही पर रुलाता नहीं हैं,
बातें तो बनाता है बहुत करता कुछ नहीं है।

सपनों को संजोता है,
नींदों को भिगोता है,
यादों के समन्दर मे,
पलकों को डुबोता है।
जब यादों मे खोता है तो कुछ कहता नहीं है,
बातें तो बनाता है बहुत करता कुछ नहीं है ।

चित्रांश सक्सेना


"याद आते हैं मेरे सब दोस्त...."


आये  थे जब  सोचा ना था, मिल जायेंगे  ऐसे भी दोस्त।
ज़िन्दगी के इस सफर मे अब,याद आते हैं मेरे सब दोस्त॥

यारों  का  मिलना,  मौसम वो बनना,
चाय की प्याली मे बिस्किट का गिरना,
खाने  की  थाली  मे लडना  झगड़ना,
किसी  चेहरे  को लेकर  घंटों टहलना।
ज़िन्दगी के इस सफर मे अब, याद आते हैं ऐसे सब दोस्त॥
आये  थे जब  सोचा ना  था,  मिल जायेंगे  ऐसे भी दोस्त।

प्यार  उन  दिनो से नहीं,
तुम सब की आदत से था,
प्यार  उन  राहों मे  नहीं,
तुम सब के फसानों मे था।
ज़िन्दगी की इस डगर मे अब, याद आते हैं ऐसे सब दोस्त॥
आये  थे जब सोचा  ना था,  मिल जायेंगे  ऐसे भी दोस्त।



Friday

चित्रांश सक्सेना


 "क्यूँ हैं...."

लोग हर मोड पर सबको परखते क्यूँ हैं,
इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यूँ हैं।

दिल से मिलने की तम्मना ही नही सबको,
लोग फिर हाथ से हाथ को मिलाते क्यूँ हैं।

करता हूँ प्यार से हस कर के सभी से बातें,
जाने फिर लोग मेरी हसी से जलते क्यूँ हैं।

जानते हैं सभी डूब जाती है कागज की नाव,
लोग फिर नाव को बारिश मे बहाते क्यूँ हैं।

चित्रांश सक्सेना


अजनबी सा अब खुद से रिश्ता बनाना पडता है,
ठोकरे खा कर भी अब तो मुस्कराना पडता है ।
बदलते दौर मे अब तो ये हाल है सबका दोस्तों,
हम जो हैं नहीं खुद को वेसा दिखाना पडता है ।

चित्रांश सक्सेना


"खुद ही संभल लिये...."
 
बदले जो रास्ते तो सभी लोग बदल लिये,
खुश रहने की खातिर हम भी बदल लिये ।

देख के जज़्बा हमारा, इतना डरे सभी कि,
काँटे भी अब तो राह के फूलों मे ढल लिये।

हसते रहे मुसीबतों मे बेखौफ इतने हम,
कि मुसीबतों ने खुद ही रास्ते बदल दिये।

ढूंडा हमने भीड मे अपनो को इस कदर,
इतना चले कि हम खुद ही संभल लिये।

Is poetry realy live in todays fast running life?

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