Saturday

बात आँखों से हो जाए...

"बात आँखों से हो जाए..."

बात ऐसी फिर हो जाएनींद रातों से खो जाए,
आमने सामने हों मगरबात आँखों से हो जाए

चांदनी रात पहली वो थी,
संग तारों के खेली वो थी,
बात होगी ये तय था मगर,
कैसे होगीपहेली वो थी
हल पहेली वो हो जाएबात आंखों से हो जाए। 

भाव चेहरे के वो पढ़ गया,
मुस्करा कर के वो बढ गया,
खुश तो ऐसे हुआ मेरा मन
जैसे कश्ती मे वो चढ़ गया,
काश कश्ती संवर जाएबात होंटों से हो जाए। 

1 comments:

Unknown said...

Nice composition. Specially the last paragraph is really nice. Way to go.

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Is poetry realy live in todays fast running life?

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