Friday

चित्रांश सक्सेना



ये जो जिंदगी है वो भी क्या क्या गुल खिलाती है
हमारी गलतियों पर रोज मुस्कराती है।
कहें भी क्या कहें हम इसकी इस नज़ाकत पे
क्यों कि ये ख्वाब देखना भी तो सिखाती है।

Is poetry realy live in todays fast running life?

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