Friday

चित्रांश सक्सेना

हमने पत्थर को कभी देवता नही माना,
खुदा कहते हैं किसको ये तक नही जाना ।
अपनी किस्मत से इतना प्यार मिला हमको,
कि माँ बाप से ऊपर किसी को नही माना ।।

चित्रांश सक्सेना

कल तो बस एक छोटा सा अल्फाज़ ही है,
जो कुछ भी है वो तो हमारा आज ही है ।
बाटोगे प्यार या खुशी तो कुछ नहीं जायेगा,
वरना गम देना तो जमाने का काज ही है ॥

चित्रांश सक्सेना

झूट बोला था जब, नजरें मिलायी नही ।
आज बोला जो सच नजरें उठाई नहीं ।।

पास जब भी गये दूर से ही रहे,
कुछ भी कहने की हिम्मत जुटाई नहीं।

गलत थे हम ये जानते थे सभी,
पर किसी ने भी गलती बताई नहीं।

दूर थी अपनी मंजिल पता था हमें,
फिर भी दूरी किसी को दिखाई नहीं।

गुज़ारिश तो कश्तियों ने समन्दर से भी की,
पर समन्दर ने किसी की भी मानी नहीं।

जाने क्या क्या सुने इस जमाने से हम,
फिर भी नफरत की फसलें उगाई नहीं।

चित्रांश सक्सेना

कभी कभी मैं सोचता हूँ ख्वाब क्यू देखू,
जो मेरे बस मे नही है वो बात क्यू देखू।
ये तो फितरत है आईने की टूट कर चुभना,
तो उस आईने को फेक कर क्यू देखू ॥

चित्रांश सक्सेना

वो दोस्त ही है जो कुछ नही कहता है,
और जब कहता है तो चुप नही रहता है।
तारे तो आसमा मे बहुत से होते हैं,
पर हमेशा चाँद उनका एक ही रहता है॥

Is poetry realy live in todays fast running life?

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