Tuesday

George William Russell....

Our friendship withers…

We might not meet, we might not chat,
But we would still be friends,
You better don’t forget that…

Times would go passing by,
Changes would come with you and me,
Our lives destiny would shape,
As with time progress we make।

Remember the moments which we share…
No matter, now you are where
You would then miss me
But in your memories I will be…

Distance would take us away miles & miles,
We might not even see each others smiles.
We might not help each other;
But still let not,
Our friendship withers…

मुनव्वर राना...

माँ....

लबों पर उसके कभी बददुआ नही होती,
बस एक माँ है जो कभी खफा नही होती...

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है...

मैंने रोते हुए पूंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों माँ ने नही धोया दुपट्टा अपना...

अभी जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नही होगा,
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है...

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में जाती है...

अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया...

मेरी ख्वाहिश है की मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपटूं की बच्चा हो जाऊँ...

'मुनव्वर' माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नही रोना,
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नही होती...

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है,
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है...

John Keats...

Ode to Autumn...

Season of mists and mellow fruitfulness!
Close bosom-friend of the maturing sun;
Conspiring with him how to load and bless
With fruit the vines that round the thatch-eaves run;
To bend with apples the mossed cottage-trees,
And fill all fruit with ripeness to the core;
To swell the gourd, and plump the hazel shells
With a sweet kernel; to set budding more,
And still more, later flowers for the bees,
Until they think warm days will never cease,
For Summer has o'erbrimmed their clammy cells.

Who hath not seen thee oft amid thy store?
Sometimes whoever seeks abroad may find
Thee sitting careless on a granary floor,
Thy hair soft-lifted by the winnowing wind;
Or on a half-reaped furrow sound asleep,
Drowsed with the fume of poppies, while thy hook
Spares the next swath and all its twined flowers;
And sometimes like a gleaner thou dost keep
Steady thy laden head across a brook;
Or by a cider-press, with patient look,
Thou watchest the last oozings, hours by hours.

Where are the songs of Spring? Ay, where are they?
Think not of them, thou hast thy music too, -
While barred clouds bloom the soft-dying day
And touch the stubble-plains with rosy hue;
Then in a wailful choir the small gnats mourn
Among the river sallows, borne aloft
Or sinking as the light wind lives or dies;
And full-grown lambs loud bleat from hilly bourn;
Hedge-crickets sing, and now with treble soft
The redbreast whistles from a garden-croft;
And gathering swallows twitter in the skies.

Monday

डाँ. कुंअर बेचैन...

अंगुलियाँ थाम के...
अंगुलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे
राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे

उसने पोंछे ही नहीं अश्क मेरी आंखों से
मैने खुद रो के बहुत देर हंसाया था जिसे

छू के होंठों को मेरे मुझसे बहुत दूर गयी
वो ग़जल मैने बड़े शौक से गाया था जिसे

मुझसे नाराज़ है इक शख्स़ का नकली चेहरा
धूप में आइना इक रोज़ दिखाया था जिसे

अब बड़ा हो के मेरे सर पे चढ़ा आता है
अपने कांधे पे कुंअर हंस के बिठाया था जिसे

बशीर बद्र....

कुछ शेर---
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाये।

दुश्मनी जमकर कारे लेकिन ये गुंजाइश रहें,
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा हों।

कोई हाथ भी मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है ज़रा फासले से मिला करो।

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यों कोई बेवफा नहीं होता।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।

Is poetry realy live in todays fast running life?

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