"जब याद घर की आती है..."
कभी हमको हसाती है, कभी
हमको रुलाती है,
दो पल हसके रो लेते हैं, जब
याद घर की आती है ।
वो माँ के आँचल का बिछोना,
पापा के हाथों का खिलोना,
याद अब भी वो आता है,
दादी के हाथों का डिठौना,
दिल को हल्का कर जाती है, जब
याद घर की आती है...
पहले हर पल जो मनते थे,
छुट्टी में तब रंग जमते थे,
दो चार अठन्नी बाबा से,
लेकर मेले सब चलते थे,
यादें अब मेले को जाती हैं, जब
याद घर की आती है...
आँगन न पहले जैसा है,
सावन न जाने कैसा है,
बस एक सहारा रहता है,
कि बेटा तू अब कैसा है,
तब आँखें गीली कर जाती है, जब
याद घर की आती है...
जब तन्हा राहों पे चलते हैं,
थोड़ा गिरकर के सँभालते हैं,
खुश होते हैं वो पंछी सब,
जब बच्चों के पर निकलते हैं,
तब याद बचपन की आती है, जब
याद घर की आती है...