Friday

चित्रांश सक्सेना


 "क्यूँ हैं...."

लोग हर मोड पर सबको परखते क्यूँ हैं,
इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यूँ हैं।

दिल से मिलने की तम्मना ही नही सबको,
लोग फिर हाथ से हाथ को मिलाते क्यूँ हैं।

करता हूँ प्यार से हस कर के सभी से बातें,
जाने फिर लोग मेरी हसी से जलते क्यूँ हैं।

जानते हैं सभी डूब जाती है कागज की नाव,
लोग फिर नाव को बारिश मे बहाते क्यूँ हैं।

चित्रांश सक्सेना


अजनबी सा अब खुद से रिश्ता बनाना पडता है,
ठोकरे खा कर भी अब तो मुस्कराना पडता है ।
बदलते दौर मे अब तो ये हाल है सबका दोस्तों,
हम जो हैं नहीं खुद को वेसा दिखाना पडता है ।

चित्रांश सक्सेना


"खुद ही संभल लिये...."
 
बदले जो रास्ते तो सभी लोग बदल लिये,
खुश रहने की खातिर हम भी बदल लिये ।

देख के जज़्बा हमारा, इतना डरे सभी कि,
काँटे भी अब तो राह के फूलों मे ढल लिये।

हसते रहे मुसीबतों मे बेखौफ इतने हम,
कि मुसीबतों ने खुद ही रास्ते बदल दिये।

ढूंडा हमने भीड मे अपनो को इस कदर,
इतना चले कि हम खुद ही संभल लिये।

चित्रांश सक्सेना


"तलाश है...." 
 
डाली से गिरे फूल को उठने की आश है।
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश है॥

मीलों हैं चले साथ उनके रहों पर इसकदर,
राहों को भी हम जैसे हमसफर की तलाश है।

बन्द आंखों मे तो देखे हैं सच होते हुये सपने,
खुली आंखों को भी सच होते सपने की तलाश है।

शक्ल तो आपके दिल मे भी होगी कोई लेकिन,
तमाम शक्लों मे उस जैसी शक्ल की तलाश है।

करते हैं सभी प्यार यहाँ इस दौर मे अब तो,
पर उस प्यार को जो निभाये उसकी तलाश है।

पत्थरों और काँच के इस खेल मे ‘चित्रांश’,
दिल को भी अपने जैसे किसी की तलाश है।

चित्रांश सक्सेना

मंज़िल की तलाश मे भागते बीत जाती थी ज़िन्दगी,
सुबह से शाम तक मज़ाक मे कट जाती थी ज़िन्दगी।
जब साथ थे तो लगता नही था कि याद आयेगी इतनी
दो घूट दोस्तो के साथ गरम चाय वाली ज़िन्दगी ॥

Is poetry realy live in todays fast running life?

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