"वो ख्वाब था जो..."
चुपचाप दबे पाँव
जाने क्या क्या कर गया ,
वो ख्वाब था जो
ख्वाब में भी आँखें भर गया ।
सावन की हर एक
बूँद में जो साथ नहाता,
कागज की नाव को
भी जो बारिश में बहाता ।
छोटी सी खुशी में
भी वो यूं साथ निभाता,
हर चोट पे चुपचाप
वो आंसू भी बहाता ।
आखों को बंद करते
ही पागल सा कर गया, वो ख्वाब
था.......
बातें तमाम मुझसे
वो पल भर में यूं करता,
सपनों की गीली
मिट्टी में अटखेलियां करता ।
सुनता तो नहीं था
मेरी, पर अपनी ही धुन
में
लड़ता कभी वो
मुझसे तो फिर प्यार भी करता ।
वो सामने आने की
सुनकर खुद मुकर गया, वो ख्वाब था…
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