Monday

चित्रांश सक्सेना


छोटी सी मात को जो हार समझ बैठे हैं,
 अपने हर लक्ष्य को वो ख्वाब मान बैठे हैं।
करेंगे क्या वो ज़िन्दगी के इस सफर मे जो,
राह के रोढ़े को अंजाम समझ बैठे हैं ॥

चित्रांश सक्सेना

दिल है कि ख्वाब इसको सजाने का शौक है,
 बारिश मे भी वो नाव बहाने का शौक है ।
कागज की उस कश्ती का सफर छोटा है लेकिन,
 पल भर की खुशी इसको मनाने का शौक है।

Sunday

चित्रांश सक्सेना


ऐ खुदा दुनिया मे खुशी का तू मंज़र कर दे,
ये ना हो तो दुखों को तू यहां से कम कर दे।
जानता हूँ कठिन है ये इस दौर मे फिर भी,
सबकी चादर तू उनके पैरों के बराबर कर दे॥

चित्रांश सक्सेना


वो खुदा भी बडे खेल खेला करता है,
हमेसा फूल को काँटों के साथ रखता है।
राह तो हर तरफ बनाता है लेकिन फिर भी,
जाने क्यू मंज़िलों को हमसे दूर रखता है॥


Tuesday

अदिति प्रसाद


इस बहरूपिया ज़िन्दगी ने मुखोटा लगाना सिखा दिया,
हम तो अच्छे थे बच्चे थे, पता नहीं ये क्या बना दिया,
पर क्या पता था एक दिन इस अनचाहे रंग मे रंग जायेंगे,
हसेंगे होठो से पर बाद मे आँखे नम कर जायेंगे,
पर क्या करें इस ज़िंदगी ने हमे ढोंगी बनना भी सिखा दिया ।


लोग कहते हैं रोना अच्छी बात नहीं, रोया मत करो,
मेरी बिनती है उनसे कि ये हक मुझसे छीना मत करो,
क्योकि जब....
अपने इल्ज़ाम लगाते हैं, आंसू उन इल्ज़ामो को मन से धो देते हैं,
लोग दुख देते हैं, आंसू उन दुखों को कम कर देते हैं ।
तो आप ही बतओ क्यो ना नम करू मैं अपनी पलकों को ?


कभी मतलबी होने का मतलब नहीं पता था,
आज वही मतलबी ज़िन्दगी जिये जा रही हू,
आज निभती है तो मतलब से टूटी है तो मतलब है,
अपना असतित्व ही पीछे छूटता जा रहा हो जैसे ।


अकेलेपन और तन्हाइयों का साथ अब अच्छा लगने लगा है,
लोगों के बीच मे तन्हा-तन्हा सा लगने लगा है,
काश ज़िन्दगी एक ऐसा मोड लाये जिसमे हम अपने असली रूप मे आयें ।
और फिर से वही अच्छे से सच्चे से बच्चे बन जायें ।
और फिर से वही अच्छे से सच्चे से बच्चे बन जायें ।।

Monday

तरुण शर्मा

"तुम "

इस और जाता कभी उस और जाता
और चलते-चलते अचानक ही रुक जाता 
कोई जब पूछता सवाल मुझसे 
मैं कुछ नहीं कह पाता 
हर कदम पर मैं खुद को 
क्यों इतना असहाय पता हूँ
इस सवाल का जबाब शायद हो "तुम "

"तुम " जबसे मेरी जिन्दगी मैं हो  आई 
मेरे साथ रहती है तुमारी परछाई
जब  भी मैं अकेला होता हूँ 
तुमारे ही खयालो मैं खोता हूँ 
तुम मुझसे नहीं कुछ कहती हो 
पर एक अहसास बन कर 
मेरे साथ रहती हो
तुम मुझसे हमेशा दूर रहती हो
लेकिन ना जाने क्यों ऐसा लगता है
की आँखों ही आँखों मैं मुझसे कुछ कहती हो 
क्या कर दिया ये तुमने की 
मैं हर पल बेचैन रहता हूँ 
दिन रात ये दर्द हमेशा सहता हूँ
क्यों है मुझे तुम से इतना प्यार
की हर जीत के बाद भी महसूस होती है
अपनी हार
समझ मे मेरे नहीं कुछ आता है 
ये मेरे तुमारे बीच क्या नाता है 
की मेरे मन मे उठता है ये भावनाओ का भंवर 
और मैं किसी से कुछ कह भी नहीं सकता मगर
पर शायद तुमारी आंखें कहती हैं मुझसे 
की मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ 
पर इस समाज से डरती हूँ
और ये युक्ति की समाज खिलाफ है इस प्यार के 
मेरी समज से बाहर है 
प्यार को त्याग और बलिदान से सींचा जाता है 
ये एक ऐसी डोर है जिसे साथ मिलके खीचा जाता है 
समाज की निरी कुरीतियों को ठुकराते हूँए 
ऐसे समाज को तिरस्कार है
जो कृष्ण को तो पूजते हैं 
और प्यार से इंकार है 
रहती है मुझे हमेशा एक आस 
की तुम लौटोगी एक दिन मेरे पास
और हाँ कहोगी की मुझे भी है तुम से प्यार 
तुम ही ने तो झीना है मेरे 
दिल का करार
पर हाँ शायद ये है एक कल्पना 
और एक मैं था जो मान बैठा था 
तुम्हे अपना
जानता हूँ तुम मुझसे दूर जाओगी
और ये साथ छूटेगा एक दिन
ये प्यारा सा अहसास टूटेगा एक दिन 
लेकिन तुम याद बन कर हमेशा 
मेरे मन मे रहोगी 
मैं तुम से ऐसे ही बात करता रहूँगा 
और तुम तब भी कुछ ना कहोगी
पर रखना ये याद हमेशा 
की एक लड़का था 
जो , हमेसा मुस्कुराता था 
और  कुछ गुनगुनाता था
जो करता था तुम्हें बहूँत प्यार
और करता रहा था तुम्हारा इंतजार 
वो हमेशा तुम से इतना ही प्यार करेगा
पर अब कभी कुछ नही कहेगा
कोई शिकायत नहीं तुमसे 
बस प्यार ही और हमेशा रहेगा ...........हमेशा रहेगा

Is poetry realy live in todays fast running life?

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