Sunday

चित्रांश सक्सेना


ऐ खुदा दुनिया मे खुशी का तू मंज़र कर दे,
ये ना हो तो दुखों को तू यहां से कम कर दे।
जानता हूँ कठिन है ये इस दौर मे फिर भी,
सबकी चादर तू उनके पैरों के बराबर कर दे॥

चित्रांश सक्सेना


वो खुदा भी बडे खेल खेला करता है,
हमेसा फूल को काँटों के साथ रखता है।
राह तो हर तरफ बनाता है लेकिन फिर भी,
जाने क्यू मंज़िलों को हमसे दूर रखता है॥


Is poetry realy live in todays fast running life?

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