Saturday

जब याद घर की आती है...

"जब याद घर की आती है..."


कभी हमको हसाती है, कभी हमको रुलाती है,
दो पल हसके रो लेते हैं, जब याद घर की आती है ।

वो माँ के आँचल का बिछोना,
पापा के हाथों का खिलोना,
याद अब भी वो आता है,
दादी के हाथों का डिठौना,
दिल को हल्का कर जाती है, जब याद घर की आती है...

पहले हर पल जो मनते थे,
छुट्टी में तब रंग जमते थे,
दो चार अठन्नी बाबा से,
लेकर मेले सब चलते थे,
यादें अब मेले को जाती हैं, जब याद घर की आती है...

आँगन न पहले जैसा है,
सावन न जाने कैसा है,
बस एक सहारा रहता है,
कि बेटा तू अब कैसा है,
तब आँखें गीली कर जाती है, जब याद घर की आती है...

जब तन्हा राहों पे चलते हैं,
थोड़ा गिरकर के सँभालते हैं,
खुश होते हैं वो पंछी सब,
जब बच्चों के पर निकलते हैं,
तब याद बचपन की आती है, जब याद घर की आती है...

बात आँखों से हो जाए...

"बात आँखों से हो जाए..."

बात ऐसी फिर हो जाएनींद रातों से खो जाए,
आमने सामने हों मगरबात आँखों से हो जाए

चांदनी रात पहली वो थी,
संग तारों के खेली वो थी,
बात होगी ये तय था मगर,
कैसे होगीपहेली वो थी
हल पहेली वो हो जाएबात आंखों से हो जाए। 

भाव चेहरे के वो पढ़ गया,
मुस्करा कर के वो बढ गया,
खुश तो ऐसे हुआ मेरा मन
जैसे कश्ती मे वो चढ़ गया,
काश कश्ती संवर जाएबात होंटों से हो जाए। 

Sunday

वो ख्वाब था जो...

"वो ख्वाब था जो..." 


चुपचाप दबे पाँव जाने क्या क्या कर गया ,
वो ख्वाब था जो ख्वाब में भी आँखें भर गया ।

सावन की हर एक बूँद में जो साथ नहाता,
कागज की नाव को भी जो बारिश में बहाता ।
छोटी सी खुशी में भी वो यूं साथ निभाता,
हर चोट पे चुपचाप वो आंसू भी बहाता ।
आखों को बंद करते ही पागल सा कर गया, वो ख्वाब था.......

बातें तमाम मुझसे वो पल भर में यूं करता,
सपनों की गीली मिट्टी में अटखेलियां करता ।
सुनता तो नहीं था मेरी, पर अपनी ही धुन में
लड़ता कभी वो मुझसे तो फिर प्यार भी करता ।
वो सामने आने की सुनकर खुद मुकर गया, वो ख्वाब था


Audio: 


Unplugged Version:

Saturday

वो तो बातें बनाते रहे....

"वो तो बातें बनाते रहे...."


वो तो बातें बनाते रहे, और हम मुस्कराते रहे । 
दूर से देख कर ही उन्हें, दिन में सपने सजाते रहे॥ 

दिल को समझाया सपना ही है,
पर वो समझा कि अपना ही है । 
मैंने बोला है मुश्किल बड़ा,
पर वो बोला ये करना ही है ॥ 
उसकी ज़िद को छुपाते रहे, और हम मुस्कराते रहे ॥ 

उनसे बातें ना करने मिलीं,
थोड़ी मायूसियाँ तब मिलीं,
बहते पानी में जैसे हो कि 
अपनी कश्ती ही ठहरी मिली,
फिर भी कश्ती सजाते रहे, दिल को सपने दिखाते रहे ॥ 

Audio:

Is poetry realy live in todays fast running life?

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