Saturday

पापा

" पापा..."

कभी हमको कुछ बतलाया कैसे हर गम सहते हो,
पापा तुम ही हो सबकी ख्वाइश जो पूरा करते हो।

रोज ज़िन्दगी तुम्हे सताती,
फिर भी तुम चुप रहते हो,
खुद से ज्यादा सबकी परवाह,
कैसे तुम कर लेते हो,
तुम ही हो सबके सपनो में कैसे खुश रह लेते हो।
पापा तुम ही हो सबकी ख्वाइश जो पूरा करते हो..

खुद को हरा कर हमें जिताना,
ऐसा भी तुम करते हो।
जब भी मुश्किल हम पर आती,
ढाल सा बनके चलते हो।
तुम ही हो जो भरी दोपहरी मे कैसे भग लेते हो।
पापा तुम ही हो सबकी ख्वाइश जो पूरा करते हो..

बाहर से तो सख्त हो दिखते,
पर अंदर नम रहते हो।
डाँटके हमको इतना तुम क्यों,
घंटों खुद चुप रहते हो
तुम भीतर नम रहकर बाहर से कैसे हस लेते हो 
पापा तुम ही हो सबकी ख्वाइश जो पूरा करते हो..


Audio:

                                             


जब याद घर की आती है...

"जब याद घर की आती है..."


कभी हमको हसाती है, कभी हमको रुलाती है,
दो पल हसके रो लेते हैं, जब याद घर की आती है ।

वो माँ के आँचल का बिछोना,
पापा के हाथों का खिलोना,
याद अब भी वो आता है,
दादी के हाथों का डिठौना,
दिल को हल्का कर जाती है, जब याद घर की आती है...

पहले हर पल जो मनते थे,
छुट्टी में तब रंग जमते थे,
दो चार अठन्नी बाबा से,
लेकर मेले सब चलते थे,
यादें अब मेले को जाती हैं, जब याद घर की आती है...

आँगन न पहले जैसा है,
सावन न जाने कैसा है,
बस एक सहारा रहता है,
कि बेटा तू अब कैसा है,
तब आँखें गीली कर जाती है, जब याद घर की आती है...

जब तन्हा राहों पे चलते हैं,
थोड़ा गिरकर के सँभालते हैं,
खुश होते हैं वो पंछी सब,
जब बच्चों के पर निकलते हैं,
तब याद बचपन की आती है, जब याद घर की आती है...

बात आँखों से हो जाए...

"बात आँखों से हो जाए..."

बात ऐसी फिर हो जाएनींद रातों से खो जाए,
आमने सामने हों मगरबात आँखों से हो जाए

चांदनी रात पहली वो थी,
संग तारों के खेली वो थी,
बात होगी ये तय था मगर,
कैसे होगीपहेली वो थी
हल पहेली वो हो जाएबात आंखों से हो जाए। 

भाव चेहरे के वो पढ़ गया,
मुस्करा कर के वो बढ गया,
खुश तो ऐसे हुआ मेरा मन
जैसे कश्ती मे वो चढ़ गया,
काश कश्ती संवर जाएबात होंटों से हो जाए। 

Sunday

वो ख्वाब था जो...

"वो ख्वाब था जो..." 


चुपचाप दबे पाँव जाने क्या क्या कर गया ,
वो ख्वाब था जो ख्वाब में भी आँखें भर गया ।

सावन की हर एक बूँद में जो साथ नहाता,
कागज की नाव को भी जो बारिश में बहाता ।
छोटी सी खुशी में भी वो यूं साथ निभाता,
हर चोट पे चुपचाप वो आंसू भी बहाता ।
आखों को बंद करते ही पागल सा कर गया, वो ख्वाब था.......

बातें तमाम मुझसे वो पल भर में यूं करता,
सपनों की गीली मिट्टी में अटखेलियां करता ।
सुनता तो नहीं था मेरी, पर अपनी ही धुन में
लड़ता कभी वो मुझसे तो फिर प्यार भी करता ।
वो सामने आने की सुनकर खुद मुकर गया, वो ख्वाब था


Audio: 


Unplugged Version:

Is poetry realy live in todays fast running life?

Extension Factory Builder