कुछ और शेर...
दो चार बार हम कभी हस हँसा लिए,
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए |
रहते हमारे पास तो ये टूटते ज़रूर,
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए ||
दुनिया ने मुझपे फेके थे पत्थर जो बेहिसाब |
मेने उन्ही को जोड़ के कोई घर बना लिए ||
कहाँ वो नई गहिरायाँ हसने हँसाने में,
मिलेंगी जो किसी के साथ दो आंसू बहने में |
तुम आये तो खुशी आई लेकिन हसूं अभी केसे ,
कुछ देर तो लगती है रो कर मुस्कराने में ||
दो चार बार हम कभी हस हँसा लिए,
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए |
रहते हमारे पास तो ये टूटते ज़रूर,
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए ||
दुनिया ने मुझपे फेके थे पत्थर जो बेहिसाब |
मेने उन्ही को जोड़ के कोई घर बना लिए ||
कहाँ वो नई गहिरायाँ हसने हँसाने में,
मिलेंगी जो किसी के साथ दो आंसू बहने में |
तुम आये तो खुशी आई लेकिन हसूं अभी केसे ,
कुछ देर तो लगती है रो कर मुस्कराने में ||
0 comments:
Post a Comment