Saturday

डा. विष्णु सक्सेना..

मुक्तक...

बेसुरे साज़ पर भी गीत गाने लगते हैं,
ज़रा सी ठेस पर आंसू बहाने लगते हैं|
इतने नादान हैं ये लड़के इन्हे तंज करो,
तेज बारिश में पतंगे उडाने लगते हैं||

ये तो पत्थर में भी मूरत उभार देते हैं,
भरते हैं रंग और फ़िर निखार देते हैं|
इतने भोले हैं ये लड़के ये जानते ही नही ,
एक मुस्कान पे जीवन गुजार देते हैं ||

ख्वाब आंखों में लिए प्यार के जब सोते हैं ,
टूटती नीद तो फ़िर जार जार रोते हैं |
प्यार का दर्द तो होता बहुत मीठा पर,
फ़िर भला आंसूं ये नमकीन से क्यों होते हैं||

फूल को तोड़ना था शाख को क्यों तोड़ दिया,
तय था इधर आना तो रुख क्यों उधर मोड़ लिया|
हमको अपना बना के छोड़ने का दावा किया,
आज अपना बनाया और यु ही छोड़ दिया ||

8 comments:

Udan Tashtari said...

आभार डॉ विष्णु सक्सेना जी की रचना प्रस्तुत करने का.

आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.

एक निवेदन:

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ब्लॉ.ललित शर्मा said...

ब्लॉग जगत में स्वागत हैं आपका.........आपको हमारी शुभकामनायें
सतत लेखन के लिए बधाई

Creative Manch said...

आपका स्वागत है
पढ़कर अच्छा लगा
शुभकामनाएं


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श्याम जुनेजा said...

vishnu ji ka ye geet acchha laga kavita ke liye pyar se bad kar koi vishay nahee arbo logo ne pyar par kavita ki par pyar phir bi vaesa hi nirmal aur divay

रचना गौड़ ’भारती’ said...

आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है। सुन्दर भावाभिव्यक्ति। मेरे ब्लोग पर भी देखें।

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...
This comment has been removed by the author.
गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

lajavab.narayan narayan

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Is poetry realy live in todays fast running life?

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