Friday

चित्रांश सक्सेना

झूट बोला था जब, नजरें मिलायी नही ।
आज बोला जो सच नजरें उठाई नहीं ।।

पास जब भी गये दूर से ही रहे,
कुछ भी कहने की हिम्मत जुटाई नहीं।

गलत थे हम ये जानते थे सभी,
पर किसी ने भी गलती बताई नहीं।

दूर थी अपनी मंजिल पता था हमें,
फिर भी दूरी किसी को दिखाई नहीं।

गुज़ारिश तो कश्तियों ने समन्दर से भी की,
पर समन्दर ने किसी की भी मानी नहीं।

जाने क्या क्या सुने इस जमाने से हम,
फिर भी नफरत की फसलें उगाई नहीं।

1 comments:

Anonymous said...

ab to kavi ki kalpana ne to had hi kar di...............gr8 work man...........carry on

Post a Comment

Is poetry realy live in todays fast running life?

Extension Factory Builder