Monday

बशीर बद्र....

कुछ शेर---
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाये।

दुश्मनी जमकर कारे लेकिन ये गुंजाइश रहें,
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा हों।

कोई हाथ भी मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है ज़रा फासले से मिला करो।

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,
यों कोई बेवफा नहीं होता।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।

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Is poetry realy live in todays fast running life?

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