माँ....
लबों पर उसके कभी बददुआ नही होती,
बस एक माँ है जो कभी खफा नही होती...
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है...
मैंने रोते हुए पूंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों माँ ने नही धोया दुपट्टा अपना...
अभी जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नही होगा,
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है...
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है...
ए अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया...
मेरी ख्वाहिश है की मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपटूं की बच्चा हो जाऊँ...
'मुनव्वर' माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नही रोना,
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नही होती...
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है...
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