Friday

चित्रांश सक्सेना


"तलाश है...." 
 
डाली से गिरे फूल को उठने की आश है।
अपनी तरह सभी को किसी की तलाश है॥

मीलों हैं चले साथ उनके रहों पर इसकदर,
राहों को भी हम जैसे हमसफर की तलाश है।

बन्द आंखों मे तो देखे हैं सच होते हुये सपने,
खुली आंखों को भी सच होते सपने की तलाश है।

शक्ल तो आपके दिल मे भी होगी कोई लेकिन,
तमाम शक्लों मे उस जैसी शक्ल की तलाश है।

करते हैं सभी प्यार यहाँ इस दौर मे अब तो,
पर उस प्यार को जो निभाये उसकी तलाश है।

पत्थरों और काँच के इस खेल मे ‘चित्रांश’,
दिल को भी अपने जैसे किसी की तलाश है।

1 comments:

guddu said...

well expressed and bahut acha likha hae kavi sahab :)you are improving year by year.. i mean your literary skill is just enhancing.. well rhyming and everything. :)

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Is poetry realy live in todays fast running life?

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