"क्यूँ हैं...."
लोग
हर मोड पर सबको परखते क्यूँ हैं,
इतना
डरते हैं तो घर से निकलते क्यूँ हैं।
दिल
से मिलने की तम्मना ही नही सबको,
लोग
फिर हाथ से हाथ को मिलाते क्यूँ हैं।
करता
हूँ प्यार से हस कर के सभी से बातें,
जाने
फिर लोग मेरी हसी से जलते क्यूँ हैं।
जानते
हैं सभी डूब जाती है कागज की नाव,
लोग
फिर नाव को बारिश मे बहाते क्यूँ हैं।
3 comments:
wah chitu wah!!!........itne time baad back to your poetry............maza aa gaya!!!
beautiful composition! shows mirror to the present world.. i really liked your composition and can relate to it.
- Aditi
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