"मुस्कराना चाहता है...."
समन्दर के किनारे घर बनाना चाहता है,
क्या है वो, दुनिया को दिखाना चाहता है।
डरता  था  कभी  जो  लहरों  से बहुत,
आज  वो  लहरों  को  डराना चाहता है।
थक  गया  जो नफरतों के  दौर से अब,
प्यार  कैसे  हो,  वो  सिखाना चाहता है।
दुनिया की इस  भीड़ मे जो खो गया था,
अब  वो  अलग चेहरा बनाना चाहता है।
पत्थरों  के  सामने  अब  तक रोता रहा,
‘दिल’ है वो, जो अब मुस्कराना चाहता है।



 
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