Saturday

चित्रांश सक्सेना


"मुस्कराना चाहता है...."

समन्दर के किनारे घर बनाना चाहता है,
क्या है वो, दुनिया को दिखाना चाहता है।

डरता  था  कभी  जो  लहरों  से बहुत,
आज  वो  लहरों  को  डराना चाहता है।

थक  गया  जो नफरतों के  दौर से अब,
प्यार  कैसे  हो,  वो  सिखाना चाहता है।

दुनिया की इस  भीड़ मे जो खो गया था,
अब  वो  अलग चेहरा बनाना चाहता है।

पत्थरों  के  सामने  अब  तक रोता रहा,
‘दिल’ है वो, जो अब मुस्कराना चाहता है।

0 comments:

Post a Comment

Is poetry realy live in todays fast running life?

Extension Factory Builder